हर साल सलूम्बर से किशोरियां अपनी पढ़ाई को निरंतर रखने के लिये तरीके निकलती है | लडकियों की रेगुलर पढ़ाई कई कारणों से छुट जाती है | लडकियों को पढ़ाना जरुरी न समझा जाता | लड़कियों को घर के कामकरने वाली या कमा कर लाने वाली लेबर तरह से अधिक देखा जाता है | घर और गाँव की इस समझ के कारण , सप्लीमेंट्री आने वाली ,फेल हो जाने वाली , स्कूल दूर होने रहने वाली , घर के काम की अधिक जिम्मेदारी निभाने वाली लड़कियों की पढ़ाई सबसे पहले बंद हो जाती है |
कई घर चाहने के बाद भी आर्थिक स्तिथि , छोटे बच्चों की जिमेदारी और लड़कियों के साथ रास्तों में होने वाली छेड़छाड़ के कारण लड़कियों को नहीं पढाते |
कारण कई है कुछ दिखाई देते है और कुछ दिखाई नहीं देते मगर लड़किया चाहते हुए भी पढ़ नहीं पाती |
तालाबंदी के समय में लड़कियों को घर से बाहर निकालना एक और चुनौती है | लडकियों की आवाजाही पर पहले से ज्यादा पाबन्दिया लग गई है | इन्हीं सब स्तिथियों को ध्यान में रखते हुए लडकियों से गांव स्तरीय चर्चा के आधार पर यह समझ बनी कि जिस गांव में ओपन बोर्ड से जुड़ी लडकियों की संख्या अधिक है वहा एक सेंटर शुरू करना चाहिए !
लड़कयों के समूह ने तय किया की वे आस पास के गांव से एकत्र हो कर एक जगह मिलेंगी और पढ़ेंगी | नतीजा निकला सलुम्बर के पास जोधसागर की भागल कक्षा की पढ़ाई के लिये एक साझी जगह | लड़कियों के साथ मिलकर इसका जिम्मा संभाला संस्था की स्थानीय कार्यकर्त्ता कल्पना ने | 10वी और 12वी कक्षा की परीक्षाओं देने वाली किशोरियाँ इस केन्द्र पर आती है और अपनी तैयारी करती है | कल्पना उनके साथ पढ़ाई करवाती है | इस सेंटर पर आस पास के गांव की 8 से 10 लडकियों ने रोजाना पढ़ने आना शुरू किया है |

इसी के साथ विशाखा से उमा उन लडकियों को सहयोग कर रही है जो अपनी पढ़ाई को निरंतर रखना चाहती है | ओपन स्कूल में एडमिशन, विषय चयन, परीक्षा से जुड़ी जानकारी, टाइम टेबल और प्रवेश पत्र दिलवाने आदि में सहयोग करती है |
ओपन बोर्ड की परीक्षा की तैयारी के लिए किसी भी तरह की व्यवस्था नही है | राजस्थान स्टेट ओपन स्कूल द्वारा वर्ष में एक बार 15 दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है जिसमें अध्ययन में आने वाली समस्याओं के निराकरण हेतु विषय विशेषज्ञ मार्गदर्शन करते है | लेकिन यह जानकारी अधिकतर लडकियों तक पहुँच नहीं पाती और जिन्हें जानकारी होती है वह भी इस कार्यक्रम में नहीं जुड़ पाती |
गांवों की सलुम्बर से दुरी अधिक होने के कारण लडकियों का 15 दिन आना – जाना संभव नही होता | कुछ लडकियां सलुम्बर तक 15 दिन निरंतर आने का किराया वहन नही कर सकती और कुछ के यहाँ आने जाने के साधन ही नहीं है
ऐसे में पढ़ाई के ये केन्द्र एक उम्मीद लेकर आये है |
द्वारा उमा पालीवाल ,


