भारत की वित्त मंत्री श्री मति निर्मला सीतारमण ने वर्ष 20-21 के वित्तीय भाषण में कहे विवरण के आधार पर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 4 जून 2020 को एक टास्क फाॅर्स का गठन किया है |
इस टास्क फॉर्म का कार्य विवाह और मातृत्व की आयु के सह सम्बन्ध का परिक्षण , मातृत्व मृत्यु दर घटाने , पोषाहार के स्तर में सुधार , उच्च शिक्षा को बढ़ावा देना , जन्म के समय लिंगानुपात , गर्भावस्था, जन्म और उसके बाद की स्तिथियों में जननी और नवजात के स्वास्थ्य सम्बन्धी मसलों पर राय एवं कार्य योजना देना |
इसका प्रभाव सोधे तौर पर किशोर- किशोरी , युवाओं पर पड़ेगा | विशाखा २०१५ से हमको कहनी अपनी बात के तहत युवाओं की आवाज को सार्वजनिक. समुदाय, व्यवस्था और निति निर्धारकों के साथ बांटती आई है
इसी श्रृंखला में संस्था ने शादी की अनिवार्यता , उम्र , यौन अधिकार जैसे मसलों पर विविध भोगोलिक एवं विभिन्नता लिए हुए युवाओं (शहरी /ग्रामीण /आदिवासी /गरीब /माध्यम आय वर्ग /कामकाजी /नौकरी पेशा /शिक्षारत ) के साथ कई विश्लेष्णात्मक प्रक्रियाएं चलाई है | ऐसी ही एक प्रक्रिया दिनांक 27 जून 2020 को नियोजित की गयी | जिसमें युवाओं ने अपनी बात रखी |
जिस तरह से ये चर्चा चली उसे युवाओं की आवाज और संचालक के सवाल /प्रोब को जस का तस लिखा गया है | बायीं तरफ सहभागियों की बातों को उन्ही की जुबानी लिखा गया है और दाई तरफ संचालनकर्ता के द्वारा चलाई गयी प्रक्रिया लिखा गया है |

समझ :
·युवाओं के सन्दर्भ में कोई भी कानून परिवर्तन / संशोधन से पूर्व उनकी स्तिथि, जरुरत और नजरिये को समझने /शामिल करने के लिए उनकी सहभागिता को पक्का किया जाना चाहिए |
·अलग अलग जगह,आयु, जेंडर, जाति, समुदाय ,सामाजिक नियम, मान्यताएं, शिक्षा के अवसर, आर्थिक स्तिथि, धर्म और एक्सपोज़र के साथ आते है | उनकी अपनी राय उसी सन्दर्भ के इर्द-गिर्द बनती है | चर्चाओं में अलग- अलग जगह के युवाओं को शामिल करने से नजरिये को विस्तार मिलेगा | समझ वास्तविक और व्यापक बन पायेगी |
·शादी, शादी की उम्र एक जटिल मुद्दा है और इसके विभिन्न सामाजिक आयाम है जिनको विभिन्न सामाजिक सन्दर्भों के साथ देंखने और समझने की जरुरत है | शादी की उम्र कानूनी रूप से तय कर देने पर जमीनी स्तर पर उसकी पालना जस की तस होना मुश्किल है | यह कानून से अधिक सामजिक मसला है |
·शादी जैसे मसले पर उम्र और अमान्यता की राय बनाते समय विभिन सामजिक ,आर्थिक, अवसर की उपलब्धता ,सांस्कृतिक संदर्भो के सूचकों को शामिल करते हुए सिविल कानून बनना बेह्तर स्तिथि होगी |
·दूरस्थ परिवेश और ग्रामीण समुदाय में युवाओं खासकर लड़कियों के लिए शिक्षा, जीवन कौशल के अवसरों की कमी है वहां व्यवस्थाओं को मजबूत और सुनिश्चित करने की जरुरत है |
·शहर और गाँव , अमीर और गरीब लड़कियों को अपना करियर बनाने के लिये शादी से पहले शिक्षा (अंक /अक्षर/व्यवहारिक ज्ञान /यौन शिक्षा और अधिकार की शिक्षा ), सह्योग और जीवन कौशल की जरुरत है | इन सब का मजबूत ढांचा होगा तो शादी में मर्जी और मातृत्व में देरी खुद-ब-खुद आयेगी |
·युवाओं की शादी की उम्र क्या हो से ज्यादा जरूरी बात उनका आत्मनिर्भर होना है | मेहनत इसी पर होनी चाहिए |
·इस पर अधिक विचार-विमर्श की आवश्यकता है क्या लड़के और लड़की के शादी की न्यूनतम उम्र अलग हो या सामान हो ? उम्र तय करने के क्या आधार हो ? सहमति , यौन सम्बन्ध बनाने और गर्भ धारण करने की उम्र के बीच स्वायतता बनी रहे, इसे पक्का करना होगा |
·समाज में जेंडर भूमिकाओं के चलते सभी के लिए नियम , मान्यताए व सहयोगी ढांचे अलग-अलग है इसलिए सभी जेंडर के लोगो की स्तिथियों , संदर्भो व जरूरतों को अलग-अलग समझने आवश्यकता है ताकि उसे संबोधित करने के लिए प्रयास भी उसी तरह से हो पाएं
| ·किशोर-किशोरी व युवाओं के साथ सामजिक मुद्दों को समझने , उनके कौशल बढ़ाने के लिये नियमित मंच व प्रयास उपलब्ध करवाने की जरुरत है |
·शिक्षा , यौनिकता , यौन स्वास्थ्य अधिकार, सामाजिक नियम व कानूनी पक्ष सबको एक साथ मिलकर देखने से समग्र समझ बन पायेगी | इसे isolation में ना देखा जाएँ |
·शादी, शादी जैसे संबंधो की अनिवार्यता व शादी जैसी संस्थाओं पर बहस और इसे चुनौती देने की दरकार है | ·व्यक्तिगत चुनाव व स्वायत्तता सभी कानूनी व सामाजिक प्रक्रिया में बहस और अधिकार का मुद्दा बनाना चाहिए |


